Friday, February 1, 2008

अध्या ८

आझ सामलाल बड़ी खोस हथ । पहिले दिन अंग्रेजी के चौथा महीना के हल । आझ सामलाल बड़ी खोस हथ । पहिले दिन अंग्रेजी के चौथा महीना के हल । भोरे तार मिललैन के राय बहादुर हो गेला । नवाब साहेब किहाँ गेला और इनखा बोले से पहिले नवाब साहेब बोलला - मोबारक होबो । दे-ख हमर तो बदली हो गेल हे और हम समझलूं के तुं समझबा के झुट्ठे तोहरा बराबर दिलासा दे हलिओ । खैर, खोदा हमरा मुंह के लाज रख लेलका, नै तो सहरवाला लोग तोहरा हमरा पीछे में नोचथुन हल ।
सामलाल -(दुनो हाथ से सलाम करके, बड़ा खोसी से गदगद) जी हाँ हुजुर, कुल मेहरबानी । (तार देखला के)
नवाब साहेब - हमरो हीं तो चिट्ठी आल हे (और निकाल के चिट्ठी सिक्रेट्रीयट के देलका) ।
सामलाल - (चिट्ठी दु-तीन मरतवे पढ़ के) - कितना मोखतसर में और कितना खुबसूरत ई-सब लि-ख हथ !
नवाब साहेब - हां दे-ख, हमनी सब एकरे एक-दू सफा में लिखतूं हल ।
सामलाल - हमरा बारे में तो राय बहादुर बाबू सामलाल उपरे में लिख देलक हे ।
एतने में अरदली आके कहलक के राय बहादुर के खोजते ढेर से मोखतार वकील सब ऐला हे ।
नवाब साहेब और सामलाल दुनुं उठ के बाहरे अइला और सबसे मिलला जुलला । सब बोलला के आझ पूरा तवाजा हमनी सब के होवे के चाही और हुजुर भी जा रहली हे, एकरे साथे रायबहादुरी के कर देवे के चाहिअन ।
सामलाल कहला - हां, हां, जरूर । हम हरगिज तोहनी से अलग नै हिओ ।
नवाब - जरूर, रायबहादुर, फिर अब हम कहां रहबे और तूं कहां रहबा ।

सलाह होल के सहर भर में तवाजा कैल जाए और तब सामलाल बाबू सामसुन्दर प्रसाद मोखतार के, जे इ-सब में बड़ी आगू र-ह हला, दुकानदार और पान वाला के नाम से चिट्ठी देलका के जे जे चीज के जरूरत होवे द । समुच्चे सहर में रोसनी के भी इन्तजाम कैलका और सब के अपना तरफ से तेल-ढिबरी भेजवा देलका । मोखतार, वकील सब के एक नाटक के क्लब हल, उ आझ एक हंसी के नाटक करेला तैयारी कैलक । खोसी के मारे सामलाल के हवास के ठिकाना नै हल, कहां की इन्तजाम हो रहल हे, कुछ ठीक से नै देख सकथ । आखिरकार सब कोई खैलक पीलक, तमाम सहर में रोसनी होल, तब ८ बजे नाटक सुरू हो गेल ।

नाटक सुरू होवे के पहिले सुतरधार आके कह गेल के बड़ी खोसी के बात हे, एहां आझ "फूल बहादुर" हम खेलवे, खास करके आज एहे वक्त ल बनौलूं ह ।

सामलाल और नवाब साहेब बड़ी खोस होला और नवाब साहेब बोलला - नाम तो बड़ी मजाक के मालूम होवे हे ।
सामलाल - बहुत अच्छा खेल सब खे-ल हथ ।
ड्राप उठते किउल स्टेसन देखलौलक ।
नवाब - वाह, बड़ा अच्छा सीन-सीनरी इ-सब के पास हे ।
सामलाल - जी हाँ हुजुर । हम भी एकरा में २००) के चपत में ही ।

खेल सुरू होल तो उपर जे लिखल गेल हे ओकरे हेरफेर करके नाटक बनावल किताब के खेल होवे लगल । एक-दू सीन के बाद नवाब साहेब के सक होल के सामलाल के बात मालूम होवे हे । नवाब साहेब उ जगह निसपीटर हला और सामलाल के जगह में एक वृन्दाबन वकील । सरबतिया के जगह पर वृन्दाबन के जोरू के नाम हल । नवाब साहेब तब सामलाल से कहलका - इ-खेल के किताब हे ? मां-ग तो । सामलाल किताब मांगलका और नवाब साहेब पढ़लका तो पैखाना में वृन्दाबन के मार खाय के बात पढ़के बड़ी मजाक समझला कि जल्दी से आखिर में देखलका तो खैला-पीला के बाद वृन्दाबन के, नाटक के नायक के एक दोस्त, मोहर डाकघर, राय बहादुर के खबर वाला चिट्ठी में देखेले कहलक और जब वृन्दाबन देखलका तो "रांची फूल्स पैरेडाइज" लिखल हल । गौर से देखलका तो मालूम भेल के कोई दूसर मोहर पहिले से हल और रांची वाला मोहर जरी से ओकरा पर हल । टिकट उखाड़ के देखलका तो नीचे अंग्रेजी में लिखल हल "अपरैल फूल ।" पढ़ला पर नवाब साहेब सामलाल से कहलका - मामला गड़बड़ मालूम होवे हे, चिट्ठी तुं लेला हल हो ?
सामलाल - जी, हां । सामलाल चिट्ठी के तबतक समझ रहला हल और एस-डी-ओ एहां से लिफाफा के भी जेकरा अरदली फाड़ के बिग देलक हल, खोजके साथ रखले हला । नवाब साहेब लिफाफा के मोहर के देखलका । ठीक, सिमला "फूल्स-पैरेडाइज" के मोहर हल । "साबस" कह के उठला और हंसते चल देलका । सामलाल तो खपत हो गेला, उ टिकट उखाड़ के देखलका तो साफ अंग्रेजी टाइप से नीचे में छपल हलः ।


'फूल बहादुर'

*

अध्या ७

मामला तूल खींच गेल । सरकार से हुकुम भेल के दुनु अफसर के बारे में जांच कैल जाय औ बराडवे साहेब कमिसनर एकरा ले तैनात कैल गेला । राम किसुन सिंघ जे हलधर सिंघ के ममेरा साला हो-व हला और जिनखा पर हलधर बाबू के बड़ी बरोसा र-ह हल उनखा नवाब साहेब सेकरेटरीअट में अपन रिसतेमंद से कहसुन के सब-रजिस्ट्रार बहाल करा देवे के लालच देके अपना दने मिला लेलका ओ कुल कागज-उगज जे इ मामला में नवाब साहेब के खिलाफ इया बाबू हलधर सिंघ के हसबखाह हल निकलवा लेलका औ एक दू रईस के औ राम किसुन सिंघ औ सामलाल के गवाह खड़ा करके झूठझूठ रूसबत लेवे के इलजाम बाबू हलधर सिंघ पर साबित करैलका और अपने निकल गेला । नवाब साहेब के मदद में एक और मोखतार सरीक हो गेला हल, उनकर नाम हल बुलाकी खां । बाबू हलधर सिंघ डिसमिस हो गेला । जाए घड़ी बड़ा अफसोस में हला, राम किसुन के देख-व । सामलाल निरबंस रह-ब और पिल्लू-पड़के मर-ब और नवाब साहेब औ बुलाकी खां के भी ऐसने कुछ सराप देलका । हलधर सिंघ अपने तो खराब चाल चलन के जरूर हला बाकी बे-कसूरी में एते भारी सजाए पावे से उनकर खेआल दिल से परमेस्वर दने होल और एहे वजह हल कि करीब करीब अछरसह उनकर सराप तीने चार बरिस में सबके हाथे हाथ पड़ल । बाकी इ बहुत दिन के बात हे । जब माघ में बाबू हलधर सिंघ बरखास्त होके बिहार से चल गेला तो नवाब साहेब बाग-बाग हो गेला और सामलाल और बुलाकी खाँ के चलती के कोए बात न रहल । बुलाकी खाँ बाकी चाल चलन में याने रंडी सराब से एकदम अलग र-ह हला और एहे से नवाब साहेब जादे इ सब के बात बहुत में सामलाल के बराबर बोलावथ । सामलाल अपन राय बहादुरी वास्ते बहुत गिरगिराथ के हुजुर अब तो हम सब काम कैलूं, कोए काम ऐसन नै जे हुजुर के वास्ते हम करे से इनकार कैलूं और अखनो नै क-र ही । दे-ख, सहर के बदमास सब अब परचा हमरे तरफ इसारा करके छपवैलका ह ।
नवाब साहेब - कौन परचा ?
सामलाल - दे-ख ने (नवाब साहेब के एकठो छपल परचा देके) ।
नवाब साहेब - वाह रे ! की हे खोसामद .... .... .... हमरा नै पढ़ल जाओ, नागरी में हे, जरी तुहीं प-ढ़ तो ।

सामलाल - (पढ़े लगला) खां बहादुरी जनून के नुसखा -
       चुगलखोरी        -    ४।।० मासा
       सुदेस द्रोहिता   -      १।०       "
       बेइमानी           -    २।।०    "
                  -----------------------------
                                 ८।०       "
       खुसामद           -   ८।०      "

ई सब के अंग्रेजी विद्या फरोस के यहाँ से खरीद के सिआह सुर्ख मुफ्तख्वार के कुइआँ से आबे - कमिनपनई में खूब पीस के पी जाए ! कुछ दिनफायदा नै होए तो माजूने भँड़ुअइ के साथ इस्तेमाल कैला से जरूर आराम होत ।

नवाब साहेब - (मुसकुरा के) बहुत बदमासी कैलक हे । तुं नालिस क-र, हम सब के देखबे ।
सामलाल - मोसकिल तो इ हे के एकरा में छपवइया, लिखवइया, छापाखाना - इ सब के केकरो नाम हइए-नै हे औ नै पते लगे हे और दूसर बात ई के मोकदमा में और बेइजती सब करता ।
नवाब साहेब - हम पुलिस में देही, उ सब पता लगवत ?
सामलाल - नै, इ सब के जरूरत नै हे । हमरा सब जादे एहे ताना मा-र हथ के गजट निकललो मोखतार साहेब ? और हुजुर से एकर खाबिन्दी नै होबे हे । अबरी पहली जनवरी के चार मरतबे गजट पढ़लूँ, कहीं हमर नाम के पते नै ।
नवाब साहेब - जरी सहरपतिया के फेर हमरा से भेंट करा द तो अब कसम खाके क-ह हीओ जरूर हो जैतो ।
सामलाल - अरे खोदा ! उ दिन रात के जे हुजुर नीसा में सूतल में ओकरा साथे जाके सुतला तो बिहान होके फेर हमरा तेरहो नीनान कैलक । पन्दरह दिन तक तो आना जाना बन्द कर देलक और फिर नाक दररते दररते हमरा मोसकिल हो गेल ।
नवाब साहेब - तो फिर वोही तरकीब । अबरी हम ओकरा सुतले में चल आम । तबरी गलती हो गेल, हम सुतले रह गेलूं ।
सामलाल - तो हम हुजुर के नाखोस नै कर स-क ही, बाकी अबरी हमरा पक्का खबर राय बहादुरी के मंगा देल जाए; ऐसे नसीबन तो ऐबे-जैबे करे हे ।


*

अध्या ६

आज भोर के सुरज उगल बाकी थोड़हीं देर में बादर घेर आल और होते होते बड़ी अन्हार हो गेल और रह-रह के बिजुली कड़के लगल । नवाब साहेब आझ दिन भर बड़ा सोंच में रहला । पिछली पहरा सामलाल के बोला भेजलका । सामलाल ऐला तो नवाब साहेब के सुस्त पैलका । कुछ समझ में न ऐलन के की बात हे । राते कामियाब नै होल तेकरे से तो सुस्त नै हथ ! बाकी इ-तो कोय काफी वजह नै हे । अभी अप्पन अकिल दौड़ाइये रहला हल और बैठले चहलका के नवाब साहेब बोलला के मोखतार साहेब, ऐसन जगह तो हम कहीं नै देखलूं हल । हम खुद जेकर खिलाफ, से-हे दोस हमरा पर लगे । रूसवते रोके के कोसिस में ही और अपना अखतियार भर काम कर रहलूँ हे । से एहां के आदमी के दे-ख, कैसन सम नासुकरा मालुम हो-व हथ के -
सामलाल - की बात हे ?
नवाब साहेब सामलाल के उ गुमनामी चिठिये दे देलका और कहलका के सब बात केकरो जाहिर नै होवे पावे ।
सामलाल - नै हुजुर, हमरा से ऐसन उमीद क-र ह ? - और पढ़े लगला ।
नवाब - तब हम तोहरा पढ़े ले देतीओ हल । हम तोहरे तो एक अपन आदमी सम-झ ही और नै तो हमर के हे ?
सामलाल (पढ़ते पढ़ते बोलला) - इ-सब हुजुर के खाबिन्दी हे । - (थोड़े देर में पढ़ लेला के बाद बोललन) - सब आदमी के एहां तो एकरा में बेकार बदनाम करना हे ।
नवाब साहेब - तब ?
सामलाल - ई तो साफ मालुम होवे हे के जेकर नुकसान इया हरज हुजुर के काम से पहुँचल हे वहे देलक हे ।
नवाब साहेब - अनेरी मजिस्टर लोग ?
सामलाल - हो सके हे ? बाकि उ-सब के नसीबन से की नफा, नोकसान ?
नवाब साहेब - (कुछ खोस हो के) साबास मोखतार साहेब ! समझलूँ । फिर तो मोखतारकारी के तजुरबा भी एक चीज हे ।
सामलाल - नै हुजुर हमरा में एक खास वसफ हे । असल के पकड़ ले ही । हम बहुत के देखलूं । हसनइमाम गैरह के साथे, बलके जादे खिलाफे, काम कैलूं बाकी सब हमर लोहा एकरा से मा-न हथ; और खाली उ-सब के नाम बढ़ल हे नै तो हमरा मोकाबला में उ-सब बात हथ ।
नवाब साहेब - ठीक हे, बाकी तुं तुरते कैसे पता लगा लेला ?
सामलाल - खोदा-दादी अकिल हमरा सम-झ हे और कुछ बात याद भी पड़ गेल । कल्ह नसीबन के यहां जे हम छिपल छिपल बाबू हलधर सिंघ के बात सुनलूं तेकरा से यकीन ऐसन हो गेल ।
नवाब साहेब - से की ?
सामलाल - की कहिओ, बहुत बुरा बुरा तोहर सान में बोलल । क-ह हल कि आप बेइमान हे और दुसरा के बेइमान कहे-हे । हम देखवै अब जरूर । ऐसने-ऐसने बात ।
नवाब साहेब - एकरे ले तुं नै राते ऐला ? हम तो राते बड़ी परेसान रहलूं । बाकी आझ इ दूसर आफत मरदूद बुन्दलक । तो तुं ऐला कैसे ?
सामलाल - तराह तराह करके बखत कटल । जब उ चल गेल तब निकललूं । बाकी बड़ी रात हो गेल तो ऊ नै आल ।
नवाब साहेब - अच्छा तो एकर की उपाय कैल जाए ? जवाब तो हम दे देवे बाकी हे जात के बाभन । बहुत सीधा तो हंसुआ ऐसन, पंचानवे हाथ के अंतड़ी रखवइआ । दे-ख ने, ओकरा में लिखलक हे के तहकिकात कैल जाए तो कागजी सबूत भी दाखिल होत । की जानु कैक ठो चिट्ठी कुछ चन्दा उन्दा वास्ते लिखलूं हल जमींदार सब के, सायद वहे जमा कैले हे ।
सामलाल - तो ओकर एकठो अपने आदमी ओकरा हीं रहे-हे और ओकरा उ बड़ी माने हे । बकस उकस भी कखनौ खोल देहे । ओकरा थोड़ा बहुत के लालच देला से उ सब काम कर दे सके हे ।
नवाब साहेब - बाकी एकरा से काम नै चलत । गदहा के मांस बे रेह के नै सीझे । खाली अपना के बचैला से नै बनत जबतक एकरा पर वार नै कैल जात ।
सामलाल - से तो ठीक हे । इ कांटा हे, एकरा जड़ मूल से उखाड़ के फेंके के चाही ।
नवाब साहेब - तो गवाह ठीक करेला होतो और मोअजीज, मोअजीज ?
सामलाल - एहे तो मोसकिल हे ।
नवाब साहेब - नै, तुं सब कर स-क ह । एकतो तुं अपने हो-ल ।
सामलाल - नै हुजुर, हमतो सब काम कर रहलूं हे बाकी हम बड़ी बदनाम हो रहलूँ हे और कुछ फायदा नै दे-ख ही ।
नवाब साहेब - तोहरा हम राय बहादुर बनाके यहां से जैबो और जो नै होत हम हाथ काटके फेक देब । तुं ऐकरा में पुरा-पुरा हमराले कोसिस क-र ।
सामलाल - जहां तक होत हम जरूर करबे !

*

अध्या ५

बाबू हलधर सिंघ तहिना रात के जब बाबू सामलाल से एहलदे होला और डेरा दने चलला हल तो रास्ता में तरह तरह के खेआल उनका होबन । कभी सोचथ के एकरा मारपीट कैलूं ह, इ आदमी बड़ा चुगलखोर हे और एसडीओ के दुलरुआ, कहीं अट-पट जाके लगा-बझा के नै कह दे और लड़ाए झगड़ा करा दे, फेर सोचथ के सरीफ आदमी कसम खेलक हे । ओकरा बारे जे हम सुनलूं से झूठ मालूम होवे हे; तो फेर दुलरुआ रहे के बात भी झुट्ठे खबर उड़ल बुझा हे, तो अपन ई बेइजती के बात सगरो गोदाल होवे के डर से इ सब बात के छेड़त कहों नै । रास्ता से फेर नसीबन के यहां आवे ले चहलका हल पर ओकर माथा में दर्द के बात इआद पड़ला से चुपचाप डेरा पर आके सुत रहला । दुसर दिन छो-पांच करते इ तै कैलका के सामलाल के और नवाब साहेब के गटपटा देवे के चाही और नसीबन के एहां कड़ा पहरा कर देलका । एने सामलाल लात के मार भुलल नै । लाज तो ओकरा नै आल बाकी रंजिस बाबू हलधर सिंघ से बड़ी ओकरा होल । नवाब साहेब रात भर बड़ी परेसान रहला, नसीबन अब आवे हे, तब आवे हे । कैक मरतबे अरदली के उनकर डेरा पर भेजलका के ऐले रहथ बोला लाओ । सड़को पर एने ओने देखे ले अपन नौकर-उकर के भेजलका बाकी आखिर में अरदली सामबाबू के एक पुरजी ले-ले आल के मोसकिल से जान बचल हे, दुसमन पहुंच गेल और रगेद मारलक, अखने तबीयत परेसान हे, पीछे मिलबो । बिहान होके बाबू हलधर सिंघ भोरे नवाब साहेब किहां पहुंचला । आदाब बन्दगी के बाद नवाब साहेब पुछलका के क-ह की हाल चाल ? सिंघजी बोलला - अच्छा हे, हम तो मर गेलूं । मामला मोकदमा के बात होते मोखतार सब के बात चलल ।
नवाब साहेब बोलला - मोखतार सब तो मोसकिल कर दे हथ । कुछ असल बात तो हमनी के जाने नै देथ । काठ के उल्लू हमनी के बना र-क्ख हथ ।
सिंघजी - सब परमेस्वर हीआं की जवाब लगैता, कुछ पते नै लगे । बाबू कन्हाए लाल से एक मरतबे हम पुछलीअन तो ऊ हमनीए के दोस देथ ।
नवाब साहेब - हमनी के की दोस ?
सिंघजी - एहे कि सच कहल जाए तो हमनी सब बिसवासे नै क-र ही ।
नवाब साहेब - ई कुछ बात हे ? असल ई क-ह के लड़ाई में कुछ कुछ दोस दुनु के रहे हे और अपन कसूर मुदई एकदम छिपा ले हे तो मुदालेह सोलह आना उठाके पी जाहे ।
सिंघजी - तो होल ने । अब डर से मुदालेह अगर झूठ नै बोले तो मोसकिल ओकरा हे ।
नवाब साहेब - मोखतार लोग दस, बीस छोड़ के करीब-करीब सब एक दम पेसे खराब कर देलका हे और ओकर असर तेजारत में आपाधापी के खेआल से वकील बरिस्टर सब भी करीब करीब वैसने होल जा हथ ।
सिंघजी - नै, ई सब जादे खराब हथ । बहुत कम ऐसन हथ जिनकर चाल चलन, रहन सहन ठीक होए और तब परमेस्वर और ईमान धर्म के खेयाल कहां तक होत ।
नवाब साहेब - तो वकील बरिस्टर कौन अच्छा ।
सिंघजी - खाली थोड़े बहुत के फरक । हां, नेआ रोसनी के सब अएला हे उ सब पहिलन से कहैं बेस हथ, पुरनकन के दे-ख बिरले कोई ऐसन हथ जे सराब ताड़ी नै पीअथ और दास्ता ने रखथ ।
नवाब साहेब - तो सामलाल तो पुरनकन में हथ, उतो बड़ा बेस आदमी, इ सब में नै बुझाथ ।
सिंघजी - ओहो बड़ा कम्मल ओढ़ के घी पिबैआ ।
नवाब साहेब - (हंस के तअजुज से) से की ?
सिंघजी - चन्दन टीका खाली धोखा देवे के हे । ऐसे तो आझ कल के कचहरी से सरोकार रखवैआ जे चन्दन-टीका करे ओकरा में सैंकड़ा पीछू ९० के पक्का बेईमान और मोत्तफनी सम-झ । कोए कायथ ऐसन मिले तो ओकरा से अलग रहला, कोसभर फरक चलला से नफा छोड़ के नोकसान होवे के डर नै रहे ।
नवाब साहेब - और कायथ सभ तोहनी बाभन के क-ह हथ ।
सिंघजी - से-हे । बाकी कोई बाभन में सामलाल के जोड़ा के देखला दे, ऊपर से एतना चिक्कन बटलोही बाकी केतना घर खराब कर देलक हे ।
नवाब साहेब - (बड़ा चाव से) से की ?
सिंघजी - अगल बगल के कोई जात ओकरा भीरी नै होत जेकरा उ एक-ने एक धुन से खराब न कैलक होत । आझ-कल सहर भर में सब से खबसूरत कहारिन हे ओकरा फंसैले हे ।
नवाब साहेब - (कुछ भओं सिकुड़ा के और मुसक के) हम नै जानलूं !
सिंघजी - बड़ा बड़ा एकरा में बखेड़ा होल । ओकर सौहर और मालिक बड़ा हल्ला करे ले चाहलका बाकी उ एक किसिम के धुरत औ नीच हे । झट साहेब सोबरनडंट कीहां ओकरा एक रात के दाखिल कर देलक तब तो उ सार जे भागल से बिहार आबे के नाम नै लेलक और कैक आदमी के पड़ला से ओकरा सौ-पचास रुपया देके दूसर सादी कर देल गेल ।
नवाब साहेब - तो उनखा जोरू उरू नै हैंन ?
सिंघजी - जोरू बड़ी खुबसूरत लोग बतला-व हथ । मेम के ऐसन सफेद और बाल आंख भी कुछ ऐसने । एकरे सब बदमास सब एक मरतबे हल्ला कर देलक के ऐकली साहेब कीहाँ अपना जोरूए के पहुँचावे हे ।
नवाब साहेब - तोबा तोबा ! उ बेचारी के मरन हो गेल होत ?
सिंघजी - तो से की जानूं । बाकी एकरा हमनी सब खूब तहकीकात कैलूं । जोरू के बारे में तो झूठ एकदम हल बाकी चमेलवा के तो अपने उ दिन रात के डाकबंगला से ऐते देखलूं हल ।
नवाब साहेब - तो तुं रात के कैसे देखला के ऐसन खुबसूरत हे ।
सिंघजी - अरे ओकरा केते मरतबे ऐसहीं दिने के देखलूं हल और के नै ओकरा कमावेले चा-ह हल ।
नवाब साहेब - तो तूं ओकरा कमैला हल ?
सिंघजी - बदनाम होवे के हल ? बाकी अगल बगल बालन के यहां कुछ दिन कमाल हल ।
नवाब साहेब और भी जीरह उरह करके अपन मन के खेआल छिपाके चमेलवा के हाल जाने ले चा-ह हला बाकी एहे बखत डाक आरदली लेके आल और नवाब साहेब ओकरा देखे लगला और सिंघजी के डेरा से नौकर बोलवे आल तो आदाव करके चल गेला । जाए घड़ी नवाब साहेब पुछलथिन - काहे चलला सिंघजी ? - हां तो अखने अपन काम क-र - कहके चल गेला ।
डाक में, एक आझ एक गुमनामी चीठी रांची से घोलटते पोलटते आल हल । कोई आदमी नवाब साहेब के बड़ी सिकायत कैलक हल और जादे सिकायत नसीबन कीहां जायके बारे में हल । ओकरा में कुछ रुसबत लेवे के भी सिकायत हल । सरकार से एकर जवाब मांगल गेल हल । नवाब साहेब तो सुख गेला और एकदम कुरसी पर पसर के सोंचे लगला के इ कौन बलाए भेल ।

*

अध्या ४

अंधारी रात हे । जरी-जरी रह-रह के बिजुली भी चमके हे । सामलाल एक आदमी के साथ भठियारी सराए के उत्तर नाला किनारे-किनारे बिजुली के हथबत्ती के सहारे टोते-टोते चलल जा हथ । जहां कहीं पत्ता-उत्ता खरखराए चौंक के एने उने देखे ल-ग हथ । आखिर उत्तर खिरकी पर पहुंच के सामलाल खटखटैलका । एक बुढ़िया औरत भितरे से बोलल - के हे ?
सामलाल - हम ।
बूढ़ी - बाबू, अरे बाप ! ऐसन रात में ! - बोलते केवाड़ी खोल देलक ।
सामलाल - का कहिओ ! केतना क-ह हीऔ के दूसर मकान में डेरा बद-ल, तो मानबे नै क-र ह ।
सामलाल अन्दर गेला और बूढ़ी केवाड़ी लगा देलक ।
सामलाल पुछलका - नसीबन कहां हे ?
बूढ़ी - उ का लेटल हे ।
सामलाल नसीबन के नजिक जाके ओकरा हाथ पकड१ के उठैलका और बोलला - काहे बी ?
नसीबन - बड़ा सर में दरद हे ।
सामलाल - च-ल च-ल, नखरा छो-ड़ । सच्चे नसीब तो बड़ हौ । मारे डिपटी सब-डिपटी गुलाम बनल हथ ।
बूढ़ी - औ मोखतार ?
सामलाल - अरे हमनी सब तो उनके गुलाम, तो तोहनी के की ?
नसीबन - सु-न, सच बात ई के सिंघजी आज आबेला हथ और फेर मालूम हो गेला से सब के लेल बड़ मोसकिल हो जात ।
सामलाल - नै, सिंघजी के तो रसातल भेजल गेल हे । आझ बड़ा जा के कहलका-सुनलका हल बाकी दुसे आने चौकी कहीं पड़ल हे ?
नसीबन - नै, खोदा के किरिआ, आझ माफ क-र ।
सामलाल - काहे ?
नसीबन - तोहरा की पड़ल हो ? एते बड़ आदमी होके ।
सामलाल - अरे नै बड़ा आदमी हथ, के उनकर बात उठाबे । लगल रहला से नजर उठा के देखले से तर जा स-क ही ।
नसीबन - हां, से तो सु-न हीओ । खूब आझकल चलल हो । मारे मोअक्किल के अनठेल भीड़ रहे हे, बाकी और सब ओली बोली मारो हो ।
सामलाल - मा-र भड़ुअन के ! हमरा कौन चीज घटे हे जे केकरो परवाह हे । खाली हम चा-ह ही के तुं डिपटी साहेब से कह-सुन के हमरा राय बहादुर के लिखवा दे ।
नसीबन - हम तो बड़ी कोसिस क-र हिओ और उहो खुस हथुन बाकी क-ह हथुन के ऊपर वालन सब तो आएं-बाएं क-र हथ । तोहर दुसमन सब कुछ बखेड़ा लगा दे हथुन के क-ह हथुन के कौन काम कैलका, कौन जमींदार हथ, अट-पट ।
सामलाल - काहे ! दे-ख असपताल में हम दू हजार रुपया देलवा देलूं और सेरम के नाम से बंक हमरे खड़ा कैल हे । पहिले रघुवर देयाल एसडीओ रट के मर गेला बाकी खाली चार ठो सुसैटी कायम भेल । हमहीं पचास ठो सुसैटी बनैलूं तो बंक चलल । बाबू ऐदल सिंघ के केतना गोड़ मुड़ पड़के कालिज बनवैलूं । हमरा ऐसन कोई मोखतारक-ह कहां ? जमींदारी से की होबे-हे ? अखनी लाखो रुपया क-ह निकाल दिओ । बिरजी-फिरजी एतना कोसिस कैलका कुछ स्कूल कालिज में ? यहां हम उ सब के चले देलूँ ? सगरो गाँधीजी के स्कूल बनल, यहां हमर मोकाबला में कुछ कोए कर सकल ? खद्दर कोए नामो ने एहां ले । से केकर बदौलत ?
नसीबन - हमरा की मतलब ?
सामलाल - (चुंबा लेके और गोदी उठावे के कोसिस करके) समूचे जान तोरा हाजीर हौ ।
नसीबन - (नखरा से अलग होके) हमर तबियत खराब हे, माफ क-र ।
सामलाल - मालूम होवे-हे तोरा नवाब साहेब खुस नै क-र हथुन ।
नसीबन - नै नै, से बात नै हे । आझ माफ क-र ।
सामलाल - (नसीबन के पैर में हाथ लगाके) - दे-ख, हमर इज्जत र-ख । ऐसे की गड़बड़ क-र ह ।
नसीबन - (अपन पैर हटा के बोले ले चहलक के बुढ़िया ओने से बदहवास आल) - अरे सिंघजी ऐलथुन ! हम कुंजी लेवे के बहाने ऐलिऔ ह ।
सामलाल और नसीबन दुनु सुख गेल । सामलाल बोलला - अरे बचाव !
नसीबन - हमर कहने नै मा-न ह । ऊ कहलीओ के जरूर ऐतो । तो सामने चल जा दरवाजा से ।
सामलाल - नै नै, उ तो सब दुकान खुलल हे ।
नसीबन - तो बगल के कोठली में चल जा ।
सामलाल - कोए हे ।
नसीबन - तफजुला ।
सामलाल - अरे बाप । उ तो कल्ह सगरो गोहार कर देत ।
नसीबन - तब कहां बतलैओ ?
सामलाल - दहिना बगल में कैसन कोठली हे ?
नसीबन - (हंस के) पैखाना ।
सामलाल झट से "की होत" करते ओकरे में घुस गेला ।
सिंघ जी ऐला और कुछ बड़ा रंज हला । बुढ़िआ से कुंजी खिरकी बंद कैला के बाद ले लेलका और कमरा में हेलला तो नसीबन माथा पकड़ले उठल और बोलल - आ-व, बै-ठ । सिंघजी कुछ तीउरी बदल के बोल-ला - सामलाल आल हे ?
नसीबन - नै, हम तो नै जानी । हमर तो सिर में दरद आज दीने से हे ।
सिंघ जी - साला आज हमरा से फुटानी छां-ट हल । अपने बेइमान तो दुनिया के बेइमान और रुसबतखोर कहे । अब जे होए, हम देखवै सार के ।
बाहर निकल के तफजुल के कोठरी में जाके देखलका तो कोए नै हे । फेर सामने बाहर के कमरा में, तो ओकरो में कोई नै मिललैन, फिर घुमला तो पैखाना देने नजर पड़लैन । ओकरा में जो लालटेन लेले गेला तो कोना में सटकल मुंह झांपले सामलाल के पैलका और "साला-हरामखोर" बोलते चढ़ले लात मारलका ।
सामलाल कर उठला - बाप रे !
सिंघजी (दुसर लात उठाके) - चुप, छछन्दर के बच्चा (और जेब से तमनचा खींच के और देखलाके) खबरदार, एहैं पर सारे बहादुरी खतम हो जैतो (और हाथ पकड़ के खींच के बाहर निकाल के नसीबन से) देख, ई कहां से जनमलौ । (सिंघजी, नसीबन और बुढ़िया सब कांपे लगली।)
नसीबन - हम कइसे कह स-क ही, इ कैसे घुस अइला ? इ तो बड़ा आदमी के एही सब लच्छन हे ?
बुढ़िया (झट से कोरान जे टंगल हल ओकरा पर हाथ रख के) - खोदा के कसम, रसूल पैगम्बर के कसम । हमनी कुछ नै जानी । इ छौंड़ी के तो दीने से तबीयत खराब हे और ओकरे में हम परिसान हलूं ।
सिंघजी - (सामलाल देने देख के) तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत । उ तो अखनै हम ओतना आझ आरजु मीनत ओकरा से कैलूं और जब नै मानलक तो समझलूं के पक्का बदमास हे । हमरा पिछु-पिछु पड़ल हे । ऐसे सार चाहे हे के नाम होत और इ भंड़ुआ के (सामलाल तरफ इशारा करके) दे-ख ओकर पिछु पड़ले हे । एकरा से अच्छा तो और खराब काम करके छिपले छिपले कमा सके हे ।
बुढ़िया - मोखतार साहेब, तूं सब गारत कैला । तूं काहे ला हमरा हीं चोर ऐसन ऐला ।
सिंघजी - मोखतार साहेब, तूं सच-सच बो-ल, एहां कैसे औ काहे ऐला ? नै तो जान से मार देवो, आगू पिढछू जे होत ।
सामलाल - (कुछ वक्त पैला से सांत होके) हमरा से और एक दोस्त से बाजी लगल । उ कहे कि नसीबन किहां सिंघजी रोज जा हथ औ हम कहलूं कि नै । ओहे उ कहलक के सांझ के केवाड़ी खुले हे खिरकी में से तूं जाके देखि-ह ।
सिंघजी - तो खिरकी में तो यहां बराबर ताला फेर लग जाहे औ लगल रहे हे ? तूं जैते हल कैसे ?
साम - इ तो हमरा मालूम हल नै ओकरे, जब कभी पहिले रहतूं हल तब ने जानतूं हल ।
सिंघजी - इ तो खाली मुदालेह के सफाय हो; तूं तो परवीन इ सब में ह ।
सामलाल - (सिंघ जी के गोड़ छू के) तुं ब्रह्मण ह । झूठ बोलूं तो कोढ़ी हो जाऊं ।
सिंघजी - (कुच सिटपिटाल ऐसन) हम तो सुनलूं हल के तू रंडी ऊ मरदूद के यहां पहुंचा-व ह और एहे नसीबन जाहे । बाकी दुनु कसम खा-ह, और दुनु के बात ऐसन हमरा मालूम होवे हे के झूठो नै कह स-क ह । बाकी दे-ख; ई सब बात केकरो से कहि-ह नै । हमहूँ तोहनीए के पकड़े अएलूं हल । हमरा बारे में सब हल्ला कैले हथ के नसीबन के र-ख हथ । एक दम झूठ बात (फेर पिछला बात मोकदमा के खेयाल करके) एकाक दू मरतवे कसम नै खा स-क ही बाकी फेर नै । बाकी हमरा से कते आदमी कह देलका और हमहूं सब सम-झ ही के बराबर हमरा बाहर एहे खेयाल से छोलकटवा भेजे हे । हम तो कहे ले चाहूं के कहदी के जाल आल कर, हमरा कोए सरोकार नै हे, हमरा बनवास काहे ले दे हे । बाकी फेर लेहाज से डरूं भी ।
सामलाल - हम नै जानु इसब, इसब में हम नै रहुं ।
सिंघजी - काहे, हमतो सुनलीओ ह के सरबतिआ के तूं खासे करके रख लेला हे औ अलगे डेरा ले देलहो हे, एक ठो बेटा भी भेलो हे ।
कसामलाल - ऊ हो गेल एक मरतबे गलती, बाकी रंडी पतुरिया में हम नै र-ह ही ।
सिंघजी - अच्छा तो च-ल, हमनी सब से गलती हो गेल से होगेल बाकी अब एकर खेआल भुला जाए के चाही, हमनी सब के पुराना दोस्ती में खलल नै होए ।
सामलाल - नै हुजुर ।
सिंघजी फेर बुढ़िया के केवाड़ी खोले-ले कहलका और कुंजी दे देलका । बुढ़िया तब खिड़की खोल देलक । सिंघजी और सामलाल तब बाहर होला और खिड़की लग गेल । आगे चलके बोलला - दे-ख, ई अबरी जे ऐलो हे से तरे सुइआ कढ़बइया हे, एकरा से जरी बचल रहिअ ।
सामलाल - जी हां, हम दू कोस इनका से छटकल र-ह ही ।
सिंघजी - दे-ख, इ सब बात केकरो से कही-अ नै ।
सामलाल - नै हुजुर, यहो कोई बात हे !


*

अध्या ३

नबाब साहेब थोड़े दिन ऐला के बादे, अनेरी मजिस्टर के इजलास में मोकदमा भेजना कम कर देलका । खाली दफा "३४" या एकरारी दफा "६०" के मोकदमा कभी-कभी भेजल करथ और जेतना काम होवे अपने करथ या दुनु डिपटी के देथ । बाकी बाहर जाए के काम जादे बाबू हलधर सिंघ के देथ, एकरा में उनकर दुनु काम, लोक और परलोक सधे । दू तीन महीना तो कस-मस करके सिंघ जी कैलका बाकी अब बरसात आ गेल तो देखलका के जादे बाहर जाना तो मरे के उपाए हे । एहे वास्ते एक रोज मौका देख बड़ा डिपटी साहेब के यहां ऐला और बात एने ओने के करके बोलला कि -
आझ काल सुराज के हल्ला से तो मोकदमा एकदम कम हो गेल हे, तइओ हमनी सब के जान परिसान रहे हे ।
नवाब साहेब - एही जरा खास महाल के काम कुछ बढ़ल हे और तहकीकात सर जमीन के, से अब काम हो जात ।
सिंघ जी - खास महाल के काम जे छोटा साहेब से हमरा देल गेल हे से तो उतना मोसकिल नै, बाकी सर जमीन पर हर मोकदमा में जाने बड़ा खराब हे । इ-सब तो पहिले अनेरी मजिस्टर सब क-र हला ।
नवाब साहेब - नै, हम तो ठान लेलुं ह के जहां तक होए झगड़ाहु मामला ई लूं सब के हाथ में नै देबे । बड़ा जुलुम गरीब फरिआदी सब पर होवे हे ।
सिंघ जी - हां, ई बात तो एक तरह से खुलल हे बाकी दु-चार तो बड़ी इमानदार हथ ।
नवाब - एहे तो मोसकिल । अगर उ-सब के देल जाए तो बाकी तो बड़ी दुःख मानता और एकदम उ सब के बेला सबूत के बेइज्जत करना होत ।
सिंघ जी - तो ई कहां तक रोकल जा सके हे । तमाम तो रुसबत के बदबू होवे हे । अरे जब एकाक-ठो हाई-कोट के जज सब के अधखुलल सिकायत ई सब के हो रहल हे तो ई बेचारन के कौन ठेकाना ।
नवाब - हमनी सब के उ-सबसे कोई मतलब नै, उ-तो सरकर जाने और बहुत जादे अतंत हो गेला से लोग सब खुद दबाय करता । बाकी छोटा दायरा में जे हमनी के अखतियार हे सेकरो में तो कुछ करना ईमान के बात है ।
सिंघ जी - हमनी केतना की कर स-क ही । सबसे भारी जुलुम तो पुलिस के घूस । जेकरा में दसे बीस इया पचासे अच्छा इमानदार हका नै तो सब रैयत के बदन में जोंक से जादे खून चुसबैया । सरकार की एकरा नै जाने हे बाकी उ भी कुछ नै कर सके । कैसे रोके हे और हमनी सब की कर स-क ही ।
नवाब - ई तो फजूल क-ह ह । एकरा में दुए बात, या तो जेकर हाथ में करे के हे से जाने हे ने और जाने हे तो रोके नै चाहे हे । डाकघर में दे-ख, कितना कम मुसाहरा सब के हे और केतना कम रुसबतखोरी । की वजह ? तुं कह-ब के उ सब के अखतिआर कम हे । से तो एकदम ठीक नै, हरदम रुपये लेवे-देवे के काम, चीठी चपाती भेजे भेजावे के काम, एकरो में बहुत कुछ वसूल करवैया कर सके हे । बाकी एकरा में अफसर सब के जादे भरोसा पबलिक पर हे । जहाँ जरी से सिकायत होल, फौरन तहकीकात और सजाए । एकरे से खाली रोजी नै लेवे के खेयाल से कोई आदमी जल्दी सिकायत नै करे हे जब तक मजबूर नै हो जाए; और जो कोए गोसाहा तनी तनी बात में सिकायत करे हे तो और सब आदमी ओकरा मदद नै करे हे । और वहे सरकार के दहिना आंख के दे-ख । पुलिस पर कोए गुमनामी सिकायत होए तो ओकर कोए खेयाल नै, नाम धरे के होए तो अउअल दरजा के मजिस्टर तहकीकात करे और गवाह पूरा तौर से साबित करे । डर से जल्दी गवाही कोए नै दे । अपन आदमी दे तो बिस्वास नै, और दूसर आदमी दे तो जादे तर डर से, हमनी सब जे नै क-र ही । तो अगर डाकखाना ऐसन जनता पर भरोसा कैल जाय तो काम नै चल सके हे ? बाकी एकरा में सरकार के रोब उठ जात, मोहब्बत के पानी जो दरखत के जिन्दा नै रखत ओकरा रौव और रुसबत के कीड़ा कब तक बचावत ?
सिंघ जी - अपने इ तो खेयाल खूब नै-ने कैलूं के जहां पर एतना बड़ा अखतियार दरोगा के देल गेल हे, जे हमनी सब से कम नै हे, और सायद कहीं पर बेसिए होत, ओहां पर आदमीयत के खेयाल करके लालच उ सब के रोके के भी उपाए कैल जाय; और दूसर बात के, सिलसिला खेयाल के भी सोच के पुलिस में ऐसन हे के जे जात से खराब हो जात ।
नवाब - उ-हम ठीक नै सम-झ ही । ५० रुपया दरोगा के सुरू में मिले हे, उमीद १००) तक के हे और अच्छा काम कैला से निसपिटर, डिपटी, सोवरनडंट, भी हो सके हे । और भी दे-ख के ई-देस में ऐसन नै के कोई दूसर जगह ऐसन आदमी जब जाथ, तो उनखा एकरा से बेसी मिलत, और एतना में पांच बेकत अच्छा से गुजर कर सके हे । तब अगर ऐसन हालत में पुलिस पर कड़ाई से काम लेल जाए और सिकायत के ऊपर पूरा ध्यान देल जाए तो बहुत थोड़े दिन में ई ठीक हो जाए । कम-से-कम देखल तो एकाक दू जिला में जा सके हे के दरोगा जमादार कैसन काम क-र हथ और एकरे से सिलसिला खेयाल भी बदल सके हे, बाकी दूसर जे तु बोलला वहे असल मोसकिल हे । एकरा में बड़ी दिन में बदलत और सायद कोई दूसर गड़बड़ी जे अखने नै सुझे हे आ जाए । एहे वास्ते सबसे अच्छा उपाय जे हम बहुत दिन से सों-च ही, उ ई के दरोगा के नाम पर भी अब हो-व हथ डिपटी, एतना पढ़ल रहला पर, पूरा मुसाहरा मिलला पर भी खाली नाम के असर से कते घूस लेवे लगला ह । एहे हम सम-झ ही के डिपटी सब थाना में भेजल जाथ और ओहदा मोसाहरा एक सब के रखल जाए ।
सिंघजी - केतना बड़ा खर्चा बढ़ जात ?
नवाब - ६० करोड़ से फाजिल ? जे गोला बारूद और खेआली दुसमन के रोके में खर्च कैल चाहे ओकरो से बेसी तो नै ? ई इनसाफ हे के बाहर से केकरो नै आवल देल जाए, आफत रोकल जाए, एकरा ले तोप हवाई जहाज रखल जाए और घर में रैयत के पचासों ताजी कुत्ता छोड़ देल जाए, के झोल झोल के मारो । केतना अच्छा होए (और हमर मुरसाला के बारे में एहे अंग्रेज सब सिकायत क-र हथ के ऐसन हल) अगर सरहद पर से तोप बंदूक हटा लेल जाए और हिन्दुस्तानी सब के हथियार रखे में रुकावट हटा लेल जाए तो मुर्दा हिन्दुस्तान के रग में खून दौड़े लगे । कब देखला तुं, के हवा के झिकोरा से बचल और धूप के गरमी से हटावल पौधा कोठरी में फूलल फरल हे ? बाकी ओकरा से तेजारत, इंगलिस्तान के जादे, और और जगह के काम, बन्द हो जात, फिर मीर जुमला और मीरकासिम कोए नै मिलत !!
सिंघजी - बाकी ई बात तो होवे के नै । सरकार साठ करोड़ खर्चा चाहे अपन गरज से, चाहे अपन गलत समझ के वजह से, कम करवैया तो नै हे, और नै तोप गोला सरहद से उठा ले सके हे ।
नवाब - तो टिकस बढ़ावे । हमर समझ हे के करीब-करीब फी मोकदमा में औसत पीछे थाना में २००) रुपया से कम देवे नै पड़े हे, और अगर खुलमखुल्ला फी-मोकदमा १०) इआ १५) कोटफीस ऐसन वसूल कैल जाए तो फी मोकदमा खर्चा डिपटी के मुसाहरावाला ऐसे निकल जात । जो गरीब रहे ओकर माफ कर देल जा सके हे और लोग खोसी से देता और ऐसन समझ से अमलन के रुसबत भी उठावल जा सके हे । कोटफीस बढ़ाके मुसहारा कुछ बढ़ा देल जा सके हे । और अदालत ऐसन फौदारियो में कायदा कर देल जा सके हे के जते कुछ दरखास्त पड़े फरीक के नकल देबल जाए ।
सिंघजी - इझार-उझार के नकल में तो फेर रुसबत के जगह अदालत में तो बनले हे । वोकरो में जो सब हाकिम के टैप मिल जाए इया रोसनाई से लिख के तीन कारबन कोपी तैयार कैल जाए और ऐसहीं सब हुकुम के तीन-तीन कोपी तैयार करके एक-एक कोपी दुनु फरीक के देल जाए और एक-एक मिसिल में रहे तो कुल बखेड़े मेट जा सके हे ।
नवाब - हम ई सब बात पर बड़ा किताब एक ठो लिखलूं हे और सरकार में पेस करे ले चा-ह ही बाकी हमरा डर हे के सुनत के ?
सिंघजी - द, देखल जात, नै सुनत तो अपने जात ।
नवाब - गेले हथ ।
सिंघजी - तो कम-से-कम ई बरसात में हमरा हैरान नै कैल जाए । अनेरी मजिस्टर जहां रहथ वहां उनके काम देल जाए ।
नवाब - हम की करूँ हमर इमान कांपे हे ।
सिंघजी - तो ई सब के, खोंगीर के भरनी काहे ले रखल जात ?
नवाब - दे-ख, जे इमनदार सब हथ उ जोर खुसामद नै क-र हथ और ई तो पहिले के हाकमान के खोसामद करवैयन के जादेतर इनाम के पद मिलल हे ।
सिंघजी - बड़ा मोसकिल हमरा मालूम होवे हे ।
नवाब - अभी कुछ दिन चला-व तो ।

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