Friday, February 1, 2008

अध्या ५

बाबू हलधर सिंघ तहिना रात के जब बाबू सामलाल से एहलदे होला और डेरा दने चलला हल तो रास्ता में तरह तरह के खेआल उनका होबन । कभी सोचथ के एकरा मारपीट कैलूं ह, इ आदमी बड़ा चुगलखोर हे और एसडीओ के दुलरुआ, कहीं अट-पट जाके लगा-बझा के नै कह दे और लड़ाए झगड़ा करा दे, फेर सोचथ के सरीफ आदमी कसम खेलक हे । ओकरा बारे जे हम सुनलूं से झूठ मालूम होवे हे; तो फेर दुलरुआ रहे के बात भी झुट्ठे खबर उड़ल बुझा हे, तो अपन ई बेइजती के बात सगरो गोदाल होवे के डर से इ सब बात के छेड़त कहों नै । रास्ता से फेर नसीबन के यहां आवे ले चहलका हल पर ओकर माथा में दर्द के बात इआद पड़ला से चुपचाप डेरा पर आके सुत रहला । दुसर दिन छो-पांच करते इ तै कैलका के सामलाल के और नवाब साहेब के गटपटा देवे के चाही और नसीबन के एहां कड़ा पहरा कर देलका । एने सामलाल लात के मार भुलल नै । लाज तो ओकरा नै आल बाकी रंजिस बाबू हलधर सिंघ से बड़ी ओकरा होल । नवाब साहेब रात भर बड़ी परेसान रहला, नसीबन अब आवे हे, तब आवे हे । कैक मरतबे अरदली के उनकर डेरा पर भेजलका के ऐले रहथ बोला लाओ । सड़को पर एने ओने देखे ले अपन नौकर-उकर के भेजलका बाकी आखिर में अरदली सामबाबू के एक पुरजी ले-ले आल के मोसकिल से जान बचल हे, दुसमन पहुंच गेल और रगेद मारलक, अखने तबीयत परेसान हे, पीछे मिलबो । बिहान होके बाबू हलधर सिंघ भोरे नवाब साहेब किहां पहुंचला । आदाब बन्दगी के बाद नवाब साहेब पुछलका के क-ह की हाल चाल ? सिंघजी बोलला - अच्छा हे, हम तो मर गेलूं । मामला मोकदमा के बात होते मोखतार सब के बात चलल ।
नवाब साहेब बोलला - मोखतार सब तो मोसकिल कर दे हथ । कुछ असल बात तो हमनी के जाने नै देथ । काठ के उल्लू हमनी के बना र-क्ख हथ ।
सिंघजी - सब परमेस्वर हीआं की जवाब लगैता, कुछ पते नै लगे । बाबू कन्हाए लाल से एक मरतबे हम पुछलीअन तो ऊ हमनीए के दोस देथ ।
नवाब साहेब - हमनी के की दोस ?
सिंघजी - एहे कि सच कहल जाए तो हमनी सब बिसवासे नै क-र ही ।
नवाब साहेब - ई कुछ बात हे ? असल ई क-ह के लड़ाई में कुछ कुछ दोस दुनु के रहे हे और अपन कसूर मुदई एकदम छिपा ले हे तो मुदालेह सोलह आना उठाके पी जाहे ।
सिंघजी - तो होल ने । अब डर से मुदालेह अगर झूठ नै बोले तो मोसकिल ओकरा हे ।
नवाब साहेब - मोखतार लोग दस, बीस छोड़ के करीब-करीब सब एक दम पेसे खराब कर देलका हे और ओकर असर तेजारत में आपाधापी के खेआल से वकील बरिस्टर सब भी करीब करीब वैसने होल जा हथ ।
सिंघजी - नै, ई सब जादे खराब हथ । बहुत कम ऐसन हथ जिनकर चाल चलन, रहन सहन ठीक होए और तब परमेस्वर और ईमान धर्म के खेयाल कहां तक होत ।
नवाब साहेब - तो वकील बरिस्टर कौन अच्छा ।
सिंघजी - खाली थोड़े बहुत के फरक । हां, नेआ रोसनी के सब अएला हे उ सब पहिलन से कहैं बेस हथ, पुरनकन के दे-ख बिरले कोई ऐसन हथ जे सराब ताड़ी नै पीअथ और दास्ता ने रखथ ।
नवाब साहेब - तो सामलाल तो पुरनकन में हथ, उतो बड़ा बेस आदमी, इ सब में नै बुझाथ ।
सिंघजी - ओहो बड़ा कम्मल ओढ़ के घी पिबैआ ।
नवाब साहेब - (हंस के तअजुज से) से की ?
सिंघजी - चन्दन टीका खाली धोखा देवे के हे । ऐसे तो आझ कल के कचहरी से सरोकार रखवैआ जे चन्दन-टीका करे ओकरा में सैंकड़ा पीछू ९० के पक्का बेईमान और मोत्तफनी सम-झ । कोए कायथ ऐसन मिले तो ओकरा से अलग रहला, कोसभर फरक चलला से नफा छोड़ के नोकसान होवे के डर नै रहे ।
नवाब साहेब - और कायथ सभ तोहनी बाभन के क-ह हथ ।
सिंघजी - से-हे । बाकी कोई बाभन में सामलाल के जोड़ा के देखला दे, ऊपर से एतना चिक्कन बटलोही बाकी केतना घर खराब कर देलक हे ।
नवाब साहेब - (बड़ा चाव से) से की ?
सिंघजी - अगल बगल के कोई जात ओकरा भीरी नै होत जेकरा उ एक-ने एक धुन से खराब न कैलक होत । आझ-कल सहर भर में सब से खबसूरत कहारिन हे ओकरा फंसैले हे ।
नवाब साहेब - (कुछ भओं सिकुड़ा के और मुसक के) हम नै जानलूं !
सिंघजी - बड़ा बड़ा एकरा में बखेड़ा होल । ओकर सौहर और मालिक बड़ा हल्ला करे ले चाहलका बाकी उ एक किसिम के धुरत औ नीच हे । झट साहेब सोबरनडंट कीहां ओकरा एक रात के दाखिल कर देलक तब तो उ सार जे भागल से बिहार आबे के नाम नै लेलक और कैक आदमी के पड़ला से ओकरा सौ-पचास रुपया देके दूसर सादी कर देल गेल ।
नवाब साहेब - तो उनखा जोरू उरू नै हैंन ?
सिंघजी - जोरू बड़ी खुबसूरत लोग बतला-व हथ । मेम के ऐसन सफेद और बाल आंख भी कुछ ऐसने । एकरे सब बदमास सब एक मरतबे हल्ला कर देलक के ऐकली साहेब कीहाँ अपना जोरूए के पहुँचावे हे ।
नवाब साहेब - तोबा तोबा ! उ बेचारी के मरन हो गेल होत ?
सिंघजी - तो से की जानूं । बाकी एकरा हमनी सब खूब तहकीकात कैलूं । जोरू के बारे में तो झूठ एकदम हल बाकी चमेलवा के तो अपने उ दिन रात के डाकबंगला से ऐते देखलूं हल ।
नवाब साहेब - तो तुं रात के कैसे देखला के ऐसन खुबसूरत हे ।
सिंघजी - अरे ओकरा केते मरतबे ऐसहीं दिने के देखलूं हल और के नै ओकरा कमावेले चा-ह हल ।
नवाब साहेब - तो तूं ओकरा कमैला हल ?
सिंघजी - बदनाम होवे के हल ? बाकी अगल बगल बालन के यहां कुछ दिन कमाल हल ।
नवाब साहेब और भी जीरह उरह करके अपन मन के खेआल छिपाके चमेलवा के हाल जाने ले चा-ह हला बाकी एहे बखत डाक आरदली लेके आल और नवाब साहेब ओकरा देखे लगला और सिंघजी के डेरा से नौकर बोलवे आल तो आदाव करके चल गेला । जाए घड़ी नवाब साहेब पुछलथिन - काहे चलला सिंघजी ? - हां तो अखने अपन काम क-र - कहके चल गेला ।
डाक में, एक आझ एक गुमनामी चीठी रांची से घोलटते पोलटते आल हल । कोई आदमी नवाब साहेब के बड़ी सिकायत कैलक हल और जादे सिकायत नसीबन कीहां जायके बारे में हल । ओकरा में कुछ रुसबत लेवे के भी सिकायत हल । सरकार से एकर जवाब मांगल गेल हल । नवाब साहेब तो सुख गेला और एकदम कुरसी पर पसर के सोंचे लगला के इ कौन बलाए भेल ।

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