Friday, February 1, 2008

अध्या ६

आज भोर के सुरज उगल बाकी थोड़हीं देर में बादर घेर आल और होते होते बड़ी अन्हार हो गेल और रह-रह के बिजुली कड़के लगल । नवाब साहेब आझ दिन भर बड़ा सोंच में रहला । पिछली पहरा सामलाल के बोला भेजलका । सामलाल ऐला तो नवाब साहेब के सुस्त पैलका । कुछ समझ में न ऐलन के की बात हे । राते कामियाब नै होल तेकरे से तो सुस्त नै हथ ! बाकी इ-तो कोय काफी वजह नै हे । अभी अप्पन अकिल दौड़ाइये रहला हल और बैठले चहलका के नवाब साहेब बोलला के मोखतार साहेब, ऐसन जगह तो हम कहीं नै देखलूं हल । हम खुद जेकर खिलाफ, से-हे दोस हमरा पर लगे । रूसवते रोके के कोसिस में ही और अपना अखतियार भर काम कर रहलूँ हे । से एहां के आदमी के दे-ख, कैसन सम नासुकरा मालुम हो-व हथ के -
सामलाल - की बात हे ?
नवाब साहेब सामलाल के उ गुमनामी चिठिये दे देलका और कहलका के सब बात केकरो जाहिर नै होवे पावे ।
सामलाल - नै हुजुर, हमरा से ऐसन उमीद क-र ह ? - और पढ़े लगला ।
नवाब - तब हम तोहरा पढ़े ले देतीओ हल । हम तोहरे तो एक अपन आदमी सम-झ ही और नै तो हमर के हे ?
सामलाल (पढ़ते पढ़ते बोलला) - इ-सब हुजुर के खाबिन्दी हे । - (थोड़े देर में पढ़ लेला के बाद बोललन) - सब आदमी के एहां तो एकरा में बेकार बदनाम करना हे ।
नवाब साहेब - तब ?
सामलाल - ई तो साफ मालुम होवे हे के जेकर नुकसान इया हरज हुजुर के काम से पहुँचल हे वहे देलक हे ।
नवाब साहेब - अनेरी मजिस्टर लोग ?
सामलाल - हो सके हे ? बाकि उ-सब के नसीबन से की नफा, नोकसान ?
नवाब साहेब - (कुछ खोस हो के) साबास मोखतार साहेब ! समझलूँ । फिर तो मोखतारकारी के तजुरबा भी एक चीज हे ।
सामलाल - नै हुजुर हमरा में एक खास वसफ हे । असल के पकड़ ले ही । हम बहुत के देखलूं । हसनइमाम गैरह के साथे, बलके जादे खिलाफे, काम कैलूं बाकी सब हमर लोहा एकरा से मा-न हथ; और खाली उ-सब के नाम बढ़ल हे नै तो हमरा मोकाबला में उ-सब बात हथ ।
नवाब साहेब - ठीक हे, बाकी तुं तुरते कैसे पता लगा लेला ?
सामलाल - खोदा-दादी अकिल हमरा सम-झ हे और कुछ बात याद भी पड़ गेल । कल्ह नसीबन के यहां जे हम छिपल छिपल बाबू हलधर सिंघ के बात सुनलूं तेकरा से यकीन ऐसन हो गेल ।
नवाब साहेब - से की ?
सामलाल - की कहिओ, बहुत बुरा बुरा तोहर सान में बोलल । क-ह हल कि आप बेइमान हे और दुसरा के बेइमान कहे-हे । हम देखवै अब जरूर । ऐसने-ऐसने बात ।
नवाब साहेब - एकरे ले तुं नै राते ऐला ? हम तो राते बड़ी परेसान रहलूं । बाकी आझ इ दूसर आफत मरदूद बुन्दलक । तो तुं ऐला कैसे ?
सामलाल - तराह तराह करके बखत कटल । जब उ चल गेल तब निकललूं । बाकी बड़ी रात हो गेल तो ऊ नै आल ।
नवाब साहेब - अच्छा तो एकर की उपाय कैल जाए ? जवाब तो हम दे देवे बाकी हे जात के बाभन । बहुत सीधा तो हंसुआ ऐसन, पंचानवे हाथ के अंतड़ी रखवइआ । दे-ख ने, ओकरा में लिखलक हे के तहकिकात कैल जाए तो कागजी सबूत भी दाखिल होत । की जानु कैक ठो चिट्ठी कुछ चन्दा उन्दा वास्ते लिखलूं हल जमींदार सब के, सायद वहे जमा कैले हे ।
सामलाल - तो ओकर एकठो अपने आदमी ओकरा हीं रहे-हे और ओकरा उ बड़ी माने हे । बकस उकस भी कखनौ खोल देहे । ओकरा थोड़ा बहुत के लालच देला से उ सब काम कर दे सके हे ।
नवाब साहेब - बाकी एकरा से काम नै चलत । गदहा के मांस बे रेह के नै सीझे । खाली अपना के बचैला से नै बनत जबतक एकरा पर वार नै कैल जात ।
सामलाल - से तो ठीक हे । इ कांटा हे, एकरा जड़ मूल से उखाड़ के फेंके के चाही ।
नवाब साहेब - तो गवाह ठीक करेला होतो और मोअजीज, मोअजीज ?
सामलाल - एहे तो मोसकिल हे ।
नवाब साहेब - नै, तुं सब कर स-क ह । एकतो तुं अपने हो-ल ।
सामलाल - नै हुजुर, हमतो सब काम कर रहलूं हे बाकी हम बड़ी बदनाम हो रहलूँ हे और कुछ फायदा नै दे-ख ही ।
नवाब साहेब - तोहरा हम राय बहादुर बनाके यहां से जैबो और जो नै होत हम हाथ काटके फेक देब । तुं ऐकरा में पुरा-पुरा हमराले कोसिस क-र ।
सामलाल - जहां तक होत हम जरूर करबे !

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