Friday, February 1, 2008

अध्या ४

अंधारी रात हे । जरी-जरी रह-रह के बिजुली भी चमके हे । सामलाल एक आदमी के साथ भठियारी सराए के उत्तर नाला किनारे-किनारे बिजुली के हथबत्ती के सहारे टोते-टोते चलल जा हथ । जहां कहीं पत्ता-उत्ता खरखराए चौंक के एने उने देखे ल-ग हथ । आखिर उत्तर खिरकी पर पहुंच के सामलाल खटखटैलका । एक बुढ़िया औरत भितरे से बोलल - के हे ?
सामलाल - हम ।
बूढ़ी - बाबू, अरे बाप ! ऐसन रात में ! - बोलते केवाड़ी खोल देलक ।
सामलाल - का कहिओ ! केतना क-ह हीऔ के दूसर मकान में डेरा बद-ल, तो मानबे नै क-र ह ।
सामलाल अन्दर गेला और बूढ़ी केवाड़ी लगा देलक ।
सामलाल पुछलका - नसीबन कहां हे ?
बूढ़ी - उ का लेटल हे ।
सामलाल नसीबन के नजिक जाके ओकरा हाथ पकड१ के उठैलका और बोलला - काहे बी ?
नसीबन - बड़ा सर में दरद हे ।
सामलाल - च-ल च-ल, नखरा छो-ड़ । सच्चे नसीब तो बड़ हौ । मारे डिपटी सब-डिपटी गुलाम बनल हथ ।
बूढ़ी - औ मोखतार ?
सामलाल - अरे हमनी सब तो उनके गुलाम, तो तोहनी के की ?
नसीबन - सु-न, सच बात ई के सिंघजी आज आबेला हथ और फेर मालूम हो गेला से सब के लेल बड़ मोसकिल हो जात ।
सामलाल - नै, सिंघजी के तो रसातल भेजल गेल हे । आझ बड़ा जा के कहलका-सुनलका हल बाकी दुसे आने चौकी कहीं पड़ल हे ?
नसीबन - नै, खोदा के किरिआ, आझ माफ क-र ।
सामलाल - काहे ?
नसीबन - तोहरा की पड़ल हो ? एते बड़ आदमी होके ।
सामलाल - अरे नै बड़ा आदमी हथ, के उनकर बात उठाबे । लगल रहला से नजर उठा के देखले से तर जा स-क ही ।
नसीबन - हां, से तो सु-न हीओ । खूब आझकल चलल हो । मारे मोअक्किल के अनठेल भीड़ रहे हे, बाकी और सब ओली बोली मारो हो ।
सामलाल - मा-र भड़ुअन के ! हमरा कौन चीज घटे हे जे केकरो परवाह हे । खाली हम चा-ह ही के तुं डिपटी साहेब से कह-सुन के हमरा राय बहादुर के लिखवा दे ।
नसीबन - हम तो बड़ी कोसिस क-र हिओ और उहो खुस हथुन बाकी क-ह हथुन के ऊपर वालन सब तो आएं-बाएं क-र हथ । तोहर दुसमन सब कुछ बखेड़ा लगा दे हथुन के क-ह हथुन के कौन काम कैलका, कौन जमींदार हथ, अट-पट ।
सामलाल - काहे ! दे-ख असपताल में हम दू हजार रुपया देलवा देलूं और सेरम के नाम से बंक हमरे खड़ा कैल हे । पहिले रघुवर देयाल एसडीओ रट के मर गेला बाकी खाली चार ठो सुसैटी कायम भेल । हमहीं पचास ठो सुसैटी बनैलूं तो बंक चलल । बाबू ऐदल सिंघ के केतना गोड़ मुड़ पड़के कालिज बनवैलूं । हमरा ऐसन कोई मोखतारक-ह कहां ? जमींदारी से की होबे-हे ? अखनी लाखो रुपया क-ह निकाल दिओ । बिरजी-फिरजी एतना कोसिस कैलका कुछ स्कूल कालिज में ? यहां हम उ सब के चले देलूँ ? सगरो गाँधीजी के स्कूल बनल, यहां हमर मोकाबला में कुछ कोए कर सकल ? खद्दर कोए नामो ने एहां ले । से केकर बदौलत ?
नसीबन - हमरा की मतलब ?
सामलाल - (चुंबा लेके और गोदी उठावे के कोसिस करके) समूचे जान तोरा हाजीर हौ ।
नसीबन - (नखरा से अलग होके) हमर तबियत खराब हे, माफ क-र ।
सामलाल - मालूम होवे-हे तोरा नवाब साहेब खुस नै क-र हथुन ।
नसीबन - नै नै, से बात नै हे । आझ माफ क-र ।
सामलाल - (नसीबन के पैर में हाथ लगाके) - दे-ख, हमर इज्जत र-ख । ऐसे की गड़बड़ क-र ह ।
नसीबन - (अपन पैर हटा के बोले ले चहलक के बुढ़िया ओने से बदहवास आल) - अरे सिंघजी ऐलथुन ! हम कुंजी लेवे के बहाने ऐलिऔ ह ।
सामलाल और नसीबन दुनु सुख गेल । सामलाल बोलला - अरे बचाव !
नसीबन - हमर कहने नै मा-न ह । ऊ कहलीओ के जरूर ऐतो । तो सामने चल जा दरवाजा से ।
सामलाल - नै नै, उ तो सब दुकान खुलल हे ।
नसीबन - तो बगल के कोठली में चल जा ।
सामलाल - कोए हे ।
नसीबन - तफजुला ।
सामलाल - अरे बाप । उ तो कल्ह सगरो गोहार कर देत ।
नसीबन - तब कहां बतलैओ ?
सामलाल - दहिना बगल में कैसन कोठली हे ?
नसीबन - (हंस के) पैखाना ।
सामलाल झट से "की होत" करते ओकरे में घुस गेला ।
सिंघ जी ऐला और कुछ बड़ा रंज हला । बुढ़िआ से कुंजी खिरकी बंद कैला के बाद ले लेलका और कमरा में हेलला तो नसीबन माथा पकड़ले उठल और बोलल - आ-व, बै-ठ । सिंघजी कुछ तीउरी बदल के बोल-ला - सामलाल आल हे ?
नसीबन - नै, हम तो नै जानी । हमर तो सिर में दरद आज दीने से हे ।
सिंघ जी - साला आज हमरा से फुटानी छां-ट हल । अपने बेइमान तो दुनिया के बेइमान और रुसबतखोर कहे । अब जे होए, हम देखवै सार के ।
बाहर निकल के तफजुल के कोठरी में जाके देखलका तो कोए नै हे । फेर सामने बाहर के कमरा में, तो ओकरो में कोई नै मिललैन, फिर घुमला तो पैखाना देने नजर पड़लैन । ओकरा में जो लालटेन लेले गेला तो कोना में सटकल मुंह झांपले सामलाल के पैलका और "साला-हरामखोर" बोलते चढ़ले लात मारलका ।
सामलाल कर उठला - बाप रे !
सिंघजी (दुसर लात उठाके) - चुप, छछन्दर के बच्चा (और जेब से तमनचा खींच के और देखलाके) खबरदार, एहैं पर सारे बहादुरी खतम हो जैतो (और हाथ पकड़ के खींच के बाहर निकाल के नसीबन से) देख, ई कहां से जनमलौ । (सिंघजी, नसीबन और बुढ़िया सब कांपे लगली।)
नसीबन - हम कइसे कह स-क ही, इ कैसे घुस अइला ? इ तो बड़ा आदमी के एही सब लच्छन हे ?
बुढ़िया (झट से कोरान जे टंगल हल ओकरा पर हाथ रख के) - खोदा के कसम, रसूल पैगम्बर के कसम । हमनी कुछ नै जानी । इ छौंड़ी के तो दीने से तबीयत खराब हे और ओकरे में हम परिसान हलूं ।
सिंघजी - (सामलाल देने देख के) तब चचाजी इनका भेद लेवे ले भेजलथिन होत । उ तो अखनै हम ओतना आझ आरजु मीनत ओकरा से कैलूं और जब नै मानलक तो समझलूं के पक्का बदमास हे । हमरा पिछु-पिछु पड़ल हे । ऐसे सार चाहे हे के नाम होत और इ भंड़ुआ के (सामलाल तरफ इशारा करके) दे-ख ओकर पिछु पड़ले हे । एकरा से अच्छा तो और खराब काम करके छिपले छिपले कमा सके हे ।
बुढ़िया - मोखतार साहेब, तूं सब गारत कैला । तूं काहे ला हमरा हीं चोर ऐसन ऐला ।
सिंघजी - मोखतार साहेब, तूं सच-सच बो-ल, एहां कैसे औ काहे ऐला ? नै तो जान से मार देवो, आगू पिढछू जे होत ।
सामलाल - (कुछ वक्त पैला से सांत होके) हमरा से और एक दोस्त से बाजी लगल । उ कहे कि नसीबन किहां सिंघजी रोज जा हथ औ हम कहलूं कि नै । ओहे उ कहलक के सांझ के केवाड़ी खुले हे खिरकी में से तूं जाके देखि-ह ।
सिंघजी - तो खिरकी में तो यहां बराबर ताला फेर लग जाहे औ लगल रहे हे ? तूं जैते हल कैसे ?
साम - इ तो हमरा मालूम हल नै ओकरे, जब कभी पहिले रहतूं हल तब ने जानतूं हल ।
सिंघजी - इ तो खाली मुदालेह के सफाय हो; तूं तो परवीन इ सब में ह ।
सामलाल - (सिंघ जी के गोड़ छू के) तुं ब्रह्मण ह । झूठ बोलूं तो कोढ़ी हो जाऊं ।
सिंघजी - (कुच सिटपिटाल ऐसन) हम तो सुनलूं हल के तू रंडी ऊ मरदूद के यहां पहुंचा-व ह और एहे नसीबन जाहे । बाकी दुनु कसम खा-ह, और दुनु के बात ऐसन हमरा मालूम होवे हे के झूठो नै कह स-क ह । बाकी दे-ख; ई सब बात केकरो से कहि-ह नै । हमहूँ तोहनीए के पकड़े अएलूं हल । हमरा बारे में सब हल्ला कैले हथ के नसीबन के र-ख हथ । एक दम झूठ बात (फेर पिछला बात मोकदमा के खेयाल करके) एकाक दू मरतवे कसम नै खा स-क ही बाकी फेर नै । बाकी हमरा से कते आदमी कह देलका और हमहूं सब सम-झ ही के बराबर हमरा बाहर एहे खेयाल से छोलकटवा भेजे हे । हम तो कहे ले चाहूं के कहदी के जाल आल कर, हमरा कोए सरोकार नै हे, हमरा बनवास काहे ले दे हे । बाकी फेर लेहाज से डरूं भी ।
सामलाल - हम नै जानु इसब, इसब में हम नै रहुं ।
सिंघजी - काहे, हमतो सुनलीओ ह के सरबतिआ के तूं खासे करके रख लेला हे औ अलगे डेरा ले देलहो हे, एक ठो बेटा भी भेलो हे ।
कसामलाल - ऊ हो गेल एक मरतबे गलती, बाकी रंडी पतुरिया में हम नै र-ह ही ।
सिंघजी - अच्छा तो च-ल, हमनी सब से गलती हो गेल से होगेल बाकी अब एकर खेआल भुला जाए के चाही, हमनी सब के पुराना दोस्ती में खलल नै होए ।
सामलाल - नै हुजुर ।
सिंघजी फेर बुढ़िया के केवाड़ी खोले-ले कहलका और कुंजी दे देलका । बुढ़िया तब खिड़की खोल देलक । सिंघजी और सामलाल तब बाहर होला और खिड़की लग गेल । आगे चलके बोलला - दे-ख, ई अबरी जे ऐलो हे से तरे सुइआ कढ़बइया हे, एकरा से जरी बचल रहिअ ।
सामलाल - जी हां, हम दू कोस इनका से छटकल र-ह ही ।
सिंघजी - दे-ख, इ सब बात केकरो से कही-अ नै ।
सामलाल - नै हुजुर, यहो कोई बात हे !


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