Friday, February 1, 2008

अध्या ३

नबाब साहेब थोड़े दिन ऐला के बादे, अनेरी मजिस्टर के इजलास में मोकदमा भेजना कम कर देलका । खाली दफा "३४" या एकरारी दफा "६०" के मोकदमा कभी-कभी भेजल करथ और जेतना काम होवे अपने करथ या दुनु डिपटी के देथ । बाकी बाहर जाए के काम जादे बाबू हलधर सिंघ के देथ, एकरा में उनकर दुनु काम, लोक और परलोक सधे । दू तीन महीना तो कस-मस करके सिंघ जी कैलका बाकी अब बरसात आ गेल तो देखलका के जादे बाहर जाना तो मरे के उपाए हे । एहे वास्ते एक रोज मौका देख बड़ा डिपटी साहेब के यहां ऐला और बात एने ओने के करके बोलला कि -
आझ काल सुराज के हल्ला से तो मोकदमा एकदम कम हो गेल हे, तइओ हमनी सब के जान परिसान रहे हे ।
नवाब साहेब - एही जरा खास महाल के काम कुछ बढ़ल हे और तहकीकात सर जमीन के, से अब काम हो जात ।
सिंघ जी - खास महाल के काम जे छोटा साहेब से हमरा देल गेल हे से तो उतना मोसकिल नै, बाकी सर जमीन पर हर मोकदमा में जाने बड़ा खराब हे । इ-सब तो पहिले अनेरी मजिस्टर सब क-र हला ।
नवाब साहेब - नै, हम तो ठान लेलुं ह के जहां तक होए झगड़ाहु मामला ई लूं सब के हाथ में नै देबे । बड़ा जुलुम गरीब फरिआदी सब पर होवे हे ।
सिंघ जी - हां, ई बात तो एक तरह से खुलल हे बाकी दु-चार तो बड़ी इमानदार हथ ।
नवाब - एहे तो मोसकिल । अगर उ-सब के देल जाए तो बाकी तो बड़ी दुःख मानता और एकदम उ सब के बेला सबूत के बेइज्जत करना होत ।
सिंघ जी - तो ई कहां तक रोकल जा सके हे । तमाम तो रुसबत के बदबू होवे हे । अरे जब एकाक-ठो हाई-कोट के जज सब के अधखुलल सिकायत ई सब के हो रहल हे तो ई बेचारन के कौन ठेकाना ।
नवाब - हमनी सब के उ-सबसे कोई मतलब नै, उ-तो सरकर जाने और बहुत जादे अतंत हो गेला से लोग सब खुद दबाय करता । बाकी छोटा दायरा में जे हमनी के अखतियार हे सेकरो में तो कुछ करना ईमान के बात है ।
सिंघ जी - हमनी केतना की कर स-क ही । सबसे भारी जुलुम तो पुलिस के घूस । जेकरा में दसे बीस इया पचासे अच्छा इमानदार हका नै तो सब रैयत के बदन में जोंक से जादे खून चुसबैया । सरकार की एकरा नै जाने हे बाकी उ भी कुछ नै कर सके । कैसे रोके हे और हमनी सब की कर स-क ही ।
नवाब - ई तो फजूल क-ह ह । एकरा में दुए बात, या तो जेकर हाथ में करे के हे से जाने हे ने और जाने हे तो रोके नै चाहे हे । डाकघर में दे-ख, कितना कम मुसाहरा सब के हे और केतना कम रुसबतखोरी । की वजह ? तुं कह-ब के उ सब के अखतिआर कम हे । से तो एकदम ठीक नै, हरदम रुपये लेवे-देवे के काम, चीठी चपाती भेजे भेजावे के काम, एकरो में बहुत कुछ वसूल करवैया कर सके हे । बाकी एकरा में अफसर सब के जादे भरोसा पबलिक पर हे । जहाँ जरी से सिकायत होल, फौरन तहकीकात और सजाए । एकरे से खाली रोजी नै लेवे के खेयाल से कोई आदमी जल्दी सिकायत नै करे हे जब तक मजबूर नै हो जाए; और जो कोए गोसाहा तनी तनी बात में सिकायत करे हे तो और सब आदमी ओकरा मदद नै करे हे । और वहे सरकार के दहिना आंख के दे-ख । पुलिस पर कोए गुमनामी सिकायत होए तो ओकर कोए खेयाल नै, नाम धरे के होए तो अउअल दरजा के मजिस्टर तहकीकात करे और गवाह पूरा तौर से साबित करे । डर से जल्दी गवाही कोए नै दे । अपन आदमी दे तो बिस्वास नै, और दूसर आदमी दे तो जादे तर डर से, हमनी सब जे नै क-र ही । तो अगर डाकखाना ऐसन जनता पर भरोसा कैल जाय तो काम नै चल सके हे ? बाकी एकरा में सरकार के रोब उठ जात, मोहब्बत के पानी जो दरखत के जिन्दा नै रखत ओकरा रौव और रुसबत के कीड़ा कब तक बचावत ?
सिंघ जी - अपने इ तो खेयाल खूब नै-ने कैलूं के जहां पर एतना बड़ा अखतियार दरोगा के देल गेल हे, जे हमनी सब से कम नै हे, और सायद कहीं पर बेसिए होत, ओहां पर आदमीयत के खेयाल करके लालच उ सब के रोके के भी उपाए कैल जाय; और दूसर बात के, सिलसिला खेयाल के भी सोच के पुलिस में ऐसन हे के जे जात से खराब हो जात ।
नवाब - उ-हम ठीक नै सम-झ ही । ५० रुपया दरोगा के सुरू में मिले हे, उमीद १००) तक के हे और अच्छा काम कैला से निसपिटर, डिपटी, सोवरनडंट, भी हो सके हे । और भी दे-ख के ई-देस में ऐसन नै के कोई दूसर जगह ऐसन आदमी जब जाथ, तो उनखा एकरा से बेसी मिलत, और एतना में पांच बेकत अच्छा से गुजर कर सके हे । तब अगर ऐसन हालत में पुलिस पर कड़ाई से काम लेल जाए और सिकायत के ऊपर पूरा ध्यान देल जाए तो बहुत थोड़े दिन में ई ठीक हो जाए । कम-से-कम देखल तो एकाक दू जिला में जा सके हे के दरोगा जमादार कैसन काम क-र हथ और एकरे से सिलसिला खेयाल भी बदल सके हे, बाकी दूसर जे तु बोलला वहे असल मोसकिल हे । एकरा में बड़ी दिन में बदलत और सायद कोई दूसर गड़बड़ी जे अखने नै सुझे हे आ जाए । एहे वास्ते सबसे अच्छा उपाय जे हम बहुत दिन से सों-च ही, उ ई के दरोगा के नाम पर भी अब हो-व हथ डिपटी, एतना पढ़ल रहला पर, पूरा मुसाहरा मिलला पर भी खाली नाम के असर से कते घूस लेवे लगला ह । एहे हम सम-झ ही के डिपटी सब थाना में भेजल जाथ और ओहदा मोसाहरा एक सब के रखल जाए ।
सिंघजी - केतना बड़ा खर्चा बढ़ जात ?
नवाब - ६० करोड़ से फाजिल ? जे गोला बारूद और खेआली दुसमन के रोके में खर्च कैल चाहे ओकरो से बेसी तो नै ? ई इनसाफ हे के बाहर से केकरो नै आवल देल जाए, आफत रोकल जाए, एकरा ले तोप हवाई जहाज रखल जाए और घर में रैयत के पचासों ताजी कुत्ता छोड़ देल जाए, के झोल झोल के मारो । केतना अच्छा होए (और हमर मुरसाला के बारे में एहे अंग्रेज सब सिकायत क-र हथ के ऐसन हल) अगर सरहद पर से तोप बंदूक हटा लेल जाए और हिन्दुस्तानी सब के हथियार रखे में रुकावट हटा लेल जाए तो मुर्दा हिन्दुस्तान के रग में खून दौड़े लगे । कब देखला तुं, के हवा के झिकोरा से बचल और धूप के गरमी से हटावल पौधा कोठरी में फूलल फरल हे ? बाकी ओकरा से तेजारत, इंगलिस्तान के जादे, और और जगह के काम, बन्द हो जात, फिर मीर जुमला और मीरकासिम कोए नै मिलत !!
सिंघजी - बाकी ई बात तो होवे के नै । सरकार साठ करोड़ खर्चा चाहे अपन गरज से, चाहे अपन गलत समझ के वजह से, कम करवैया तो नै हे, और नै तोप गोला सरहद से उठा ले सके हे ।
नवाब - तो टिकस बढ़ावे । हमर समझ हे के करीब-करीब फी मोकदमा में औसत पीछे थाना में २००) रुपया से कम देवे नै पड़े हे, और अगर खुलमखुल्ला फी-मोकदमा १०) इआ १५) कोटफीस ऐसन वसूल कैल जाए तो फी मोकदमा खर्चा डिपटी के मुसाहरावाला ऐसे निकल जात । जो गरीब रहे ओकर माफ कर देल जा सके हे और लोग खोसी से देता और ऐसन समझ से अमलन के रुसबत भी उठावल जा सके हे । कोटफीस बढ़ाके मुसहारा कुछ बढ़ा देल जा सके हे । और अदालत ऐसन फौदारियो में कायदा कर देल जा सके हे के जते कुछ दरखास्त पड़े फरीक के नकल देबल जाए ।
सिंघजी - इझार-उझार के नकल में तो फेर रुसबत के जगह अदालत में तो बनले हे । वोकरो में जो सब हाकिम के टैप मिल जाए इया रोसनाई से लिख के तीन कारबन कोपी तैयार कैल जाए और ऐसहीं सब हुकुम के तीन-तीन कोपी तैयार करके एक-एक कोपी दुनु फरीक के देल जाए और एक-एक मिसिल में रहे तो कुल बखेड़े मेट जा सके हे ।
नवाब - हम ई सब बात पर बड़ा किताब एक ठो लिखलूं हे और सरकार में पेस करे ले चा-ह ही बाकी हमरा डर हे के सुनत के ?
सिंघजी - द, देखल जात, नै सुनत तो अपने जात ।
नवाब - गेले हथ ।
सिंघजी - तो कम-से-कम ई बरसात में हमरा हैरान नै कैल जाए । अनेरी मजिस्टर जहां रहथ वहां उनके काम देल जाए ।
नवाब - हम की करूँ हमर इमान कांपे हे ।
सिंघजी - तो ई सब के, खोंगीर के भरनी काहे ले रखल जात ?
नवाब - दे-ख, जे इमनदार सब हथ उ जोर खुसामद नै क-र हथ और ई तो पहिले के हाकमान के खोसामद करवैयन के जादेतर इनाम के पद मिलल हे ।
सिंघजी - बड़ा मोसकिल हमरा मालूम होवे हे ।
नवाब - अभी कुछ दिन चला-व तो ।

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