Friday, February 1, 2008

मुख बंध

'सुनीता' के जैसन आदर से पाठकगन अपनैलका हे और श्रीयुत् सुनीति कुमार चटर्जी जैसन प्रेम से ओकरा अंग्रेजी के नामी मासिक पत्र में [1] परिछन कैलका हे, ओकरा से उत्साह हमर जरूर बढ़ गेल हे । हम सम-झ ही कि उनकर कृपा मगही पर से घटत नै, और इहे सोंच के हम फिर दूसर पुस्तक के साथ उनकर भीरी हाजिर होलूं हे । कमी और गलती जरूर इ सब में हे और यथासक्ति उ सब के हटावे के कोसिस भी कैल जात ।

कुछ भूमिहार भाई एकरा से रंज हो गेला हे कि उनकर जात भाई के नकल 'सुनीता' में बनावल गेल हे । उनखा से हमर अर्ज हे कि हमर हरगिज ऐसन नै ख्याल हल नै हे । बुराई जे ओकरा में दरसावल गेल हे, उ फैलोल हे, एकरा में सक नै, और ओकर निन्दा भी करे के चाही, एहो निसन्देह । तो फिर कोए जात के तो एकर भाव सहे होत । फूल बहादुर में दे-ख, हमर एक लाला भाई गोबर्धन उठऔलका हे । और कुछ दिन बाद 'गदह नीत' में और केकरो चैनमारी के खम्भा बने होत ।

परिछन में तो हमरा जादे उमीद भांड़ी के हल, लेकिन प्रथम मिलन के प्रेम के प्रवाह में सायद हमर भाषा-संबंधी उ सब के भूल गेला और बड़ी खूबसूरती से अपन भाव हमरा संकेत से कह देलका हे । ओकरा मोताबिक अपन मातृभाषा के सजे-धजे के ख्याल हमरा आज २० बरस से हे, लेकिन धन काफी नै रहला से ओकरा करके नै देखला सकलूं । किताब सैंकड़ों लिखल पड़ल हे और बहुत से के लिखकर पूरा कर देवे के सामान तैयार हे, बाकी छपे कैसे ? परसाल 'बंगला के उत्पत्ति और विकास' में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ पाँच करते करते जिन्दगी बेकाम कैले खतम हो जाए के हे । एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल, और एतना जल्दी में उ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल । लेकिन अधिक कृपा के कारण लोग एकर सिकायत नै कैलका हे । दबल मुंह से इ कहल गेल हे कुछ अच्छा वार्ता से सुरू कैल जात हल, तो एकरा में उजुर हमरा एतनै कि हमर मातृभाषा के बैठे के जगह भी नै हे, मगर, अब जब हम ओकरा अपन और बहिन समान करे के खेयाल से खड़ा होलूं हे, तो पहिले झाड़ू-बहाड़ू तो करना जरूर हे । आस पास वालन के गर्दा पड़त तो सहयोगी के धर्म कुछ सहे के हे, और हमरा ई बात से बड़ी खुसी हे कि उ अपन धर्म के पूरा तौर पालन कैलका । उ सब जे जरी 'ओः' क-र हथ, से उनखा सन्तोख देवे ले हम ई कहे ले चाह-ही कि अबरी भर हो गेलो । अबसे पानी छींट के बहाड़वे और 'गदहनीत' में केकरो असकुस नै मालूम होत, और जेहे में हमर मातृभाषा सुसज्जित हो जाए हम नीचे लिखल किताब छपावे के कोसिस करबे :--

१. पांच हजार बरस के फूल में सुगन्ध - (मतलब ऋग्‌वेद के काव्य के खेयाल से उमदा मंत्र के मगही में तरजुमा । साथ-साथ उ सबपर जर्मन, फ्रांसीसी, अंगरेजी, और संस्कृत व्याख्या के तुलना)

२. मगही रामायन - (ई हमरा दने बहुत दिन से प्रचलित हे, हम एकरा लिखा रहलूं हे)

३. साढ़े तीन हजार बरस के सुगन्धित फूल - (पारसी गाथा के मगही तरजुमा ऐसन । एहो तैयार हो रहल हे )

४. मगही महाभारत

५. मगही भागवत (तैयार हे)

६. मगही के भाषा-वैज्ञानिक तत्व

७. मगही में बूढ़ी मम्मा (प्रचलित खिस्सा के संग्रह)

८. मगही कहावत(एक बंगाली भाई जौर कैलका हे)

९. भारतवर्ष के पुराना हाल (अपना खोज के मुताबिक)

१०. मगही कोरान

११. महम्मद साहब के जीवनी, इत्यादि


बहुत से हमर जिन्दगी में खतम नै होत, एकरा ले हम कुछ धन बंक में कर देबे ले ही कि कुछ दिन के बाद जब सूद दर सूद काफी रकम हो जाए तो जे एकर पंच होता उ मगही भाषा जे तखने प्रचलित रहत ओकरा और और भासा के बराबर अलंकृत करे के कोसिस करता । बंगला, हिन्दी, १००-५० बरस में बढ़ गेल हे । मगही के जादे दिन लगत ? हमरा डर एक बात के हल के हिन्दी (या खिचड़िया हिन्दुस्तानी) मगही के लोप नै कर दे । मगर अंगरेजी राज रहते पूरा तौर से पढ़ाए के इन्तजाम नै हो सके हे और एकरे से उमीद हे कि अनपढ़ मगही अपन भासा के नै भूलता । एकरा से ई न कि स्वराज हासिल करे में हम रूक रहब, मगर हमनी के साथे-साथे ई भी कोसिस करे के होत के उदंड सूर्ज के डूबे के पहिले मगही अपन जगह पर कायम हो जाए ।


नवादा                                      }         ज॰ प॰
मि॰ ३ बैसाख सं॰ १९८५ वि॰
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[1] Modern Review for April 1928, p. 430

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